Tuesday, September 25, 2012

अब से माहौल बदलने लगा

एक दिन जो जैसे सालों बाद आया था
जब सूरज उगा नहीं
जब चाँद ने चांदनी बिखेरने से इनकार कर दिया

उस दिन आपसे मुदस्सर न हुई धडकनें
उस दिन न बरसा नूर आप की आवाजों का

और फिर बस ऐसे ही दिन बनते गए
न आप हैं न आप की खुशबू इस माहौल में
न उम्मीद है की उस हरफ के पीछे से खिलखिलाते आप चले आयेंगे

अब इस माहौल से पोशीदा हूँ मैं
और ये माहौल मेरे चारों तरफ फैलता जाता है


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