एक दिन जो जैसे सालों बाद आया था
जब सूरज उगा नहीं
जब चाँद ने चांदनी बिखेरने से इनकार कर दिया
उस दिन आपसे मुदस्सर न हुई धडकनें
उस दिन न बरसा नूर आप की आवाजों का
और फिर बस ऐसे ही दिन बनते गए
न आप हैं न आप की खुशबू इस माहौल में
न उम्मीद है की उस हरफ के पीछे से खिलखिलाते आप चले आयेंगे
अब इस माहौल से पोशीदा हूँ मैं
और ये माहौल मेरे चारों तरफ फैलता जाता है
जब सूरज उगा नहीं
जब चाँद ने चांदनी बिखेरने से इनकार कर दिया
उस दिन आपसे मुदस्सर न हुई धडकनें
उस दिन न बरसा नूर आप की आवाजों का
और फिर बस ऐसे ही दिन बनते गए
न आप हैं न आप की खुशबू इस माहौल में
न उम्मीद है की उस हरफ के पीछे से खिलखिलाते आप चले आयेंगे
अब इस माहौल से पोशीदा हूँ मैं
और ये माहौल मेरे चारों तरफ फैलता जाता है