जब आप के बुत की परछाईं में जीते थे हम
तब आपके चाहने वालों की शुमार में आते थे ,
आज उनके मुस्सलिमे के तले ठहरे तो
आपने उसे बुतपरस्ती बता मुझे काफ़िर बना दिया ..
आप की हर चोट पर हम उफ्फ्फ भी न करते थे
कभी आपका ग़म कभी गुस्सा समझा
पर आज जब आईना पकडे सामने आये आपके
ऊँगली उठाने का हमें इलज़ाम दे दिया ...
तब आपके चाहने वालों की शुमार में आते थे ,
आज उनके मुस्सलिमे के तले ठहरे तो
आपने उसे बुतपरस्ती बता मुझे काफ़िर बना दिया ..
आप की हर चोट पर हम उफ्फ्फ भी न करते थे
कभी आपका ग़म कभी गुस्सा समझा
पर आज जब आईना पकडे सामने आये आपके
ऊँगली उठाने का हमें इलज़ाम दे दिया ...