Wednesday, October 10, 2012

आज इलज़ाम है मुझ पर

जब आप के बुत की परछाईं में जीते थे हम
तब आपके चाहने वालों की शुमार में आते थे ,
आज उनके मुस्सलिमे के तले ठहरे तो
आपने उसे बुतपरस्ती बता मुझे काफ़िर बना दिया ..

आप की हर चोट पर हम उफ्फ्फ भी न करते थे
कभी आपका ग़म कभी गुस्सा समझा
पर आज जब आईना पकडे सामने आये आपके
ऊँगली उठाने का हमें इलज़ाम दे दिया ...






No comments: