Tuesday, May 14, 2013

एक रईस  था मैं
दरख्तों भरा बगीचा था
हर एक पेड़ खून पसीने से सींचा था
एक ख़ुशी का आलम था , और
चहचाहट थी खुशियों की
अकेला था पर गम न था कोई

फिर आप दिखे एक मोड़ पर मुझे
अपनी मस्ती में खिलखिलाते हुए
न जाने क्यूँ समझा मैं की साथ की जरूरत है मुझे
साथ देने को आपका उस खुशनुमा बाग से निकल कर धुप में

साथ रहे  सड़कों पर हम
जब कुछ नहीं था पास हमारे
आलम था गरीबी का फिर भी
उस साथ पर फक्र था हमें
हर लम्हे की ख़ुशी लेते रहे तुम और हम खिलखिलाना ही देखते रहे

आज बहुत कुछ पा  लिया तुमने ,
तो अब ये साथ सालता है
गुरूर है तुम्हे उस रईसी का आज
आज येही साथ काट खाता है तुम्हे
आगे बढ़ गए तुम उस धुप से

मेरे उस दरख़्त पर अब किसी और का बाशिंदा है
धुप में जलते पैरों के साथ
आगे बढ़ता जाऊँगा मैं अकेले ही
फिर एक बग़ीचा बनेगा सूखी ज़मीन से
सबक दिया है मुझे ज़िन्दगी का तुमने
इस सबक को भूल न पाऊँगा