Tuesday, September 25, 2012

अब से माहौल बदलने लगा

एक दिन जो जैसे सालों बाद आया था
जब सूरज उगा नहीं
जब चाँद ने चांदनी बिखेरने से इनकार कर दिया

उस दिन आपसे मुदस्सर न हुई धडकनें
उस दिन न बरसा नूर आप की आवाजों का

और फिर बस ऐसे ही दिन बनते गए
न आप हैं न आप की खुशबू इस माहौल में
न उम्मीद है की उस हरफ के पीछे से खिलखिलाते आप चले आयेंगे

अब इस माहौल से पोशीदा हूँ मैं
और ये माहौल मेरे चारों तरफ फैलता जाता है


Monday, September 24, 2012

बिन शब्दों जो कहना चाहता था तुमसे

जब बरखा की वो बूँदें गिरती थी सूखे पत्तों पर
पत्ते खिल उठते थे हरे भरे से 
कभी न कुछ कहा उन बूंदों ने 
सिर्फ एक स्पर्श बहुत था ये बताने को
कि बूंदों को प्यार है इस धरा से 
धरा कि हर सूखी पत्ती से

जब नदी ने सागर को समर्पित किया था खुद को -
जब अस्तित्व मिटा कर खो गयी थी सागर में, 
कुछ भी न कहा था उस नदी ने खुद को खो कर भी 
यूं भी कोई शब्द बयाँ न कर पाता उस समर्पण को

यूं तो हैं कोटि शब्द उस शब्दावली में 
लेकिन उनके कंधे पे सर रख के रोने में वो सुकून है 
जो उन लाखों शब्दों के ढेर में नहीं मिलता -
नवजात शिशु की बंद पलकों संग , बंधी मुठ्ठी में 
माँ की ऊँगली पकड़ते प्रेम को किस शब्द में बयाँ कर पायेगी शब्दावली

जब शब्द नहीं कह सकते मेरे अंतर्मन की पीड़ा 
नहीं जता सकते इस ह्रदय का प्रेम
उस मुहब्बत की जुबान नहीं बन सकते
तो क्यूँ शब्दों की दुहाई देते हैं वो मुझे
कुछ न कहा मैंने कभी 
तो आँखों की ख़ामोशी का क्या कोई मोल नहीं
हर स्पर्श क्या नहीं कह जाता था हाल ए दिल तुम से---

न जाने क्यूँ वो एहसास न समझ पाए तुम
न जाने इन शब्दों का भी क्या अर्थ हो
पर चाहता हूँ, इन शब्दों में छुपे 
उस प्यार को समझाने में तुम समर्थ हो 



Wednesday, September 12, 2012

the last rendezvous!!

















when we met last, you smiled at me

that stroll by the trees, and the look in your eyes

the tinkle in your giggle, the breeze whispering
and then winds picked up speed

it was a storm,  which hit us in the face
the gust of winds that blew us apart
and i did not know when we met last
that it was the last time i met you